भारत की भूमिगत जल स्तर उसकी पुनर्प्राप्ति से तेज़ी से घट रहा है, वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी – मानव रचना वॉटर समिट 2025

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फरीदाबाद, 21 नवंबर 2025: भारत के जलाशय अपनी पुनर्प्राप्ति से तेज़ी से घट रहे हैं, जिसमें अतिअन्वेषण, प्रदूषण और जलवायु-प्रेरित वर्षा पैटर्न संकट को बढ़ा रहे हैं। देश का एक-तिहाई हिस्सा पहले से ही अत्यधिक दोहन या संवेदनशील क्षेत्र में है, जिससे भूमिगत जल सुरक्षा राष्ट्रीय महत्व का मामला बन गई है। इसी संदर्भ में प्रमुख वैज्ञानिक, शिक्षाविद, नीति निर्माता और तकनीकी विशेषज्ञ मानव रचना इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ रिसर्च एंड स्टडीज़ में वॉटर समिट 2025 के लिए एकत्र हुए – दो दिवसीय सम्मेलन जिसमें देश के भूमिगत जल संसाधनों की सुरक्षा के लिए नवीनतम नवाचार और वैज्ञानिक रणनीतियों पर चर्चा की गई। यह विचार-विमर्श सतत भूमिगत जल प्रबंधन और सामाजिक एवं पारिस्थितिक उपयोगों पर केंद्रित था और इसे केंद्रीय भूमिगत जल बोर्ड के सहयोग से आयोजित किया गया, जिसमें वैज्ञानिक अनुसंधान को नीति कार्यों के साथ जोड़ने की तत्काल आवश्यकता पर जोर दिया गया।
डॉ. दीपंकर साहा, चेयर प्रोफेसर, CAWTM, MRIIRS ने कहा कि “भारत की भूमिगत जल समुदाय अब अलग-अलग अध्ययनों से सिस्टम-स्तरीय सोच की ओर बढ़ रही है, जो जिला स्तर पर जलाशय रणनीतियों को सीधे प्रभावित करेगी।”
डॉ. संजय श्रीवास्तव, उपकुलपति, MRIIRS ने जोड़ा कि “उन्नत निगरानी और मॉडलिंग से जल पुनर्भरण और नियमन उपाय अब जलवायु-संवेदनशील और समुदाय-केंद्रित बनाए जा सकते हैं, साथ ही भूमिगत जल और कंप्यूटर विज्ञान के बीच इंटरफ़ेस को मशीन लर्निंग और AI के माध्यम से विकसित किया जा सकता है।”
इस समिट के अवसर पर डॉ. डी. के. चड्ढा चेयर की स्थापना भी की गई, जो उनके नाम पर है और भारत में भूमिगत जल शासन में उनके दूरदर्शी योगदान का सम्मान करती है तथा सतत और विज्ञान-आधारित भूमिगत जल प्रबंधन की उनकी दृष्टि को आगे बढ़ाती है।
श्रीमती श्वेताली अभिजीत ठकरे, अध्यक्ष, महाराष्ट्र जल संसाधन नियामक प्राधिकरण ने उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता की और उन्नत हाइड्रोलॉजिकल टूल्स के महत्व पर प्रकाश डाला। प्रो. अभिजीत मुखर्जी, IIT खड़गपुर ने गहरे जलाशयों के व्यवहार और दीर्घकालिक स्थिरता पर जानकारी दी।
डॉ. ओ. पी. मिश्रा, सलाहकार, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय ने बहु-जोखिम दृष्टिकोण की आवश्यकता पर बल दिया और कहा कि “भू-विज्ञान, सेंसर नेटवर्क और पूर्वानुमान मॉडलिंग का समेकन आवश्यक होगा क्योंकि जलवायु अस्थिरता भूमिगत जल प्रणालियों को बदल रही है।”
डॉ. शिवकुमार कल्याणरामन, CEO, ANRF ने कहा कि “अंतरविषयक टीमों, मजबूत फील्ड डेटा सिस्टम और तकनीक आधारित प्लेटफॉर्म से नवाचार के नए अवसर उत्पन्न होंगे।”
दूसरे दिन तकनीकी सत्रों में जल प्रदूषण, जलवायु प्रभाव, खनन का जलाशयों पर प्रभाव और अर्थ ऑब्ज़र्वेशन तकनीकों की भूमिका पर शोध प्रस्तुत किया गया। 46 प्रस्तुतियाँ और 19 पोस्टर समुदाय-केंद्रित मॉडल और जलवायु-स्थिरता समाधान पर केंद्रित थे।
डॉ. अरुणांगसु मुखर्जी, निदेशक, CAWTM ने कहा कि “भूमिगत जल अनुसंधान का असली उद्देश्य तब होता है जब यह जमीनी स्तर पर जीवन सुधारता है; यह समिट इस कनेक्शन को मजबूत करता है।”
निवेदिता तिवारी, मुख्य महाप्रबंधक, NABARD, हरियाणा ने समुदाय की लचीलापन बढ़ाने के लिए नवाचारपूर्ण जल प्रबंधन प्रथाओं का समर्थन करने पर जोर दिया।
सम्मेलन ने वैज्ञानिक उपकरणों के उपयोग को बढ़ाने, फील्ड डेटा सिस्टम मजबूत करने, अंतरविषयक शोध को प्रोत्साहित करने और शिक्षा, सरकार और स्थानीय समुदायों के बीच मजबूत साझेदारी बनाने का आह्वान किया। प्रतिभागियों ने कहा कि भारत के भूमिगत जल संसाधनों की सुरक्षा पीने के पानी, कृषि और पारिस्थितिक संतुलन के लिए आवश्यक है और इसके लिए समन्वित, नवाचार-प्रधान राष्ट्रीय प्रयास जरूरी हैं।

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